वीर दुर्गादास राठौङ

॥जय जय राजस्थान॥
"जय सालवा कलाँ"
"धरती धोराँ री, मीठे गीतोँ री, रणवीरोँ री शूरवीरोँ री।
... अटे खून सस्तो है पण पाणी मँहगोँ है।
शीश कट्या धङ लङ्या आ शान है राजस्थान री, अमरसिँह, वीर दुर्गादास राठौङ सरीके वीरोँ री।
आ धरती है भक्ति मे तपीयोङी मीराँ री सगळी दुनिया बोल रही कि आ धरती है बलिदान री॥
"इलां न देणी आँपणे माँ हालरिये हुलराय, पूत सिखावे पालणे मरण बङाई माँय"
मेरी कलम से....
वीर, साहसी, बलिदानीँ, स्वामीभक्त का जन्म 13 अगस्त 1638 मे मारवाङ के 'सालवा' (वर्तमान मे सालवा कलाँ है) ग्राम मे हुआ था। इनके पिता का नाम आसकरण था जो जोधपुर के महाराजा जसवंतसिँह के मन्त्री थे
आसकरण जी के तीन पत्नियाँ थी इनके पिता ने मनमुटाव के कारण दुर्गादास और इनकी माँ का परित्याग कर दिया और उनको एक छोटे से गाँव 'लूनवा' मे भेज दिया।
दुर्गादास और उनकी माँ गाँव मे रहते हुए खेती बाङी कर जीवन का गुजारा करने लगे। आसकरण जी का अब उनका कोई सबँन्ध नही था।
इनकी माँ ने मारवाङ और राजवंश के प्रति भक्ति भावना कूट कूट कर भर दी।
वीर दुर्गादास राठौङ बचपन से ही साहसी और निडर थे
एक समय की बात है दुर्गादास अपने खेत रहे थे तभी एक 'राइका' पशु चराने वाले ने उनके खेत मे ऊँट चरा दिये। दुर्गादास ने उसको खेत मे पशु चराने के लिए मना किया लेकिन उस रेबारी ने राजा जसवंत सिँह तथा जोधपुर राज्य के लिए अपमानजनक शब्दो का प्रयोक किया तथा उनको गालियाँ दी।
इस घटना से क्रोध मे आकर दुर्गादास ने उस राइका को मार डाला।
समस्त देश बन्धुओँ को यह सन्देश दिया जाता आप भी अपने साहस और संयम का परिचय देवेँ।
आप भी निडर होकर ईँट का जवाब पत्थर से देना सीखो।
धन्यवाद
प्रस्तुतकर्ता :
अशोक बैनिवाल
नवयुवक मण्डल सालवा कलाँ जोधपुर

॥जाटाँ दी शान॥ प्रिय दोस्तो धरती माता का सच्चा पुत्र जाट होता है अरे वो इस धरती पर अन्न उगाता है न तो वो सर्दी देखता है न ही गर्मी, बस अपनी धुन मे लगा रहता है जब से बरसात का सिलसिला शुरु होता है वो इस सुर्य की तेज गर्मी मे अपने खेतोँ मे जाकर काम शुरु करता है सर्वप्रथम वो खेत मे जाकर अपनी भूमि को उपजाऊ बनाता है फिर बीज बोता है उसके बाद खरपतवार जिसे स्थानीय भाषा मे निनाण कहा जाता है उसके बाद फसल को काटा जाता है अर्थात जाट जी तोङ मेहनत करता है इसलिए मातृभूमि का सच्चा पुत्र जाट ही होता है जय जाट समाज
प्रस्तुतकर्त्ता:
अशोक चौधरी नवयुवक मण्डल सालवा कलाँ
जय जाट समाज सालवा कलां
''जाट तो जाट'' होते हे,
वक्त पर तलवार की धार होते हे, दिल लगाने पर दिलदार होते हे..!
कोई शक हो तो किसी से भी पूछ लो, 'जाट तो यारो के भी यार' होते हे..!!
जय जाट की, गर्व से कहो:- हम 'जाट' हे, जाट एकता जिन्दाबाद........!!!
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